राणा परिवार के साथ मिथलेश की रही सियासी दोस्ती और अदावत
17 साल पहले पूर्व सांसद ने झेला था हत्या का मुकदमा, दो साल बाद मिथलेश ने कादिर के भाई को हराया
मुजफ्फरनगर। यूपी की सियासत में पिछड़े समाज से आने वाली मिथलेश पाल की किस्मत का सितारा फिर से चमका है। 1995 से सक्रिय राजनीति में आई मिथलेश पाल दूसरी बार यूपी की विधानसभा में पहुंची हैं। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनको जीत की बधाई दी। मिथलेश की सियासत में संयोग यह रहा है कि उनको राणा परिवार से सियासत में सहयोग भी खूब मिला तो सियासी बिसात पर राणा परिवार के साथ उनकी अदावत भी किसी से छिपी नहीं रही है। आज वो पूर्व सांसद कादिर राणा की पुत्रवधु सुम्बुल राणा को पराजित कर विधायक बनने के कारण चर्चाओं में है। 17 साल पहले कादिर राणा ने उनको पूरी शिद्दत के साथ चुनाव लड़वाया था और मिथलेश पाल के कारण ही उनको हत्या तक का मुकदमा झेलना पड़ा। इसके दो साल बाद ही मिथलेश कादिर के भाई को सियासी बिसात पर पराजित कर विधायक बन गई थी।
मिथलेश पाल का राजनीतिक सफर काफी लम्बा है। जिला ंपचायत के चुनाव से 1995 में सक्रिय राजनीति की शुरूआत करने वाली मिथलेश पाल को हमेशा ही उनके समाज ने भरपूर समर्थन दिया है। वो ओबीसी की लीडर मानी जाती रही हैं। उन्होंने अनेक चुनाव लड़े लेकिन जीत कम ही मिली, पर इसके बावजूद भी उनका हौसला हर चुनाव ने बढ़ाने का काम किया है। मीरापुर उप चुनाव की सरगर्मी तेज होने के बाद भी मिथलेश पाल का कहीं भी कोई नाम नहीं चल रहा था। परन्तु एनडीए गठबंधन में मीरापुर सीट पर रालोद का दावा पक्का होने के बावजूद भी यहां टिकट उनके हिस्से में आया। रालोद से उनका यह विधानसभा में चौथा चुनाव रहा है। रालोद में वो पूर्व सांसद कादिर राणा के साथ ही लम्बे समय तक राजनीति करती रही हैं। 17 साल पहले रालोद की ओर से उनको मुजफ्फरनगर पालिका में चेयरमैन पद के लिए प्रत्याशी बनाया गया था तो उस दौरान रालोद में रहे कादिर राणा ने उनको यहां मजबूती के साथ चुनाव लड़ाने का काम किया। सूजडू गांव से ही मुजफ्फर राणा के साथ बनी कादिर की अदावत भी इस चुनाव में आड़े आई, क्योंकि मुजफ्फर सपा में थे और वो सपा के प्रत्याशी राशिद सिद्दीकी को सपोर्ट कर रहे थे। शहर के मौहल्ला किदवईनगर की ओर वोटिंग के दिन एक बूथ पर हुई झड़प के दौरान मुजफ्फर राणा की हत्या कर दी गई। इसमें आरोप कादिर राणा पर लगे और मुकदमे में भी उनका नाम आया। यह तो मिथलेश की कादिर परिवार के साथ सियासी दोस्ती की कहानी है। इसके दो साल बाद ही कादिर राणा ने रालोद छोड़कर बसपा का दामन थामा और मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत गये। मोरना से उनके त्याग पत्र के कारण वहां उपचुनाव हुए। 2009 में हुए इस चुनाव में मिथलेश पाल का सामना राणा परिवार से ही हुआ। मिथलेश रालोद के ही टिकट पर यह चुनाव लड़ी, जबकि बसपा से कादिर राणा के भाई नूरसलीम राणा मैदान में आये।
साल 2009 के अगस्त माह में मोरना विधानसभा सीट पर उप चुनाव हुआ। इसमें 25 प्रत्याशियों ने नामांकन किया, जिनमें से 16 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला हुआ। रालोद से मिथलेश पाल, बसपा से नूरसलीम राणा, सपा से जमील और कांग्रेस से शबी हैदर मुख्य रूप से मुकाबले में बने रहे। 14 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। उस चुनाव में मोरना क्षेत्र में कुल 203834 वोटर पंजीकृत थे, जिनमें से 134333 मतदाताओं ने अपने वोट डाले थे। रालोद प्रत्याशी मिथलेश पाल ने 54161 वोट हासिल किये और बसपा के नूरसलीम को 49577 मत मिले थे। चुनाव में 4584 मतों के अंतर से मिथलेश ने कादिर राणा के भाई को हराकर चुनाव जीत लिया था। अब 15 साल बाद एक बार फिर से इसी क्षेत्र में हुए उप चुनाव में मिथलेश पाल की किस्मत ने संयोग से जीत दिलाई और जीत भी राणा परिवार के खिलाफ मिली। मिथलेश ने इस बार 84304 मत पाकर कादिर राणा की पुत्रवधु को 30796 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया। यहां पर चार हजार से 30 हजार के अंतर वाली जीत तक पहुंचने में मिथलेश पाल को 15 साल का समय लगा है। उस चुनाव में वो अकेली महिला प्रत्याशी थी, तो इस बार के चुनाव में उनका मुकाबला राणा परिवार की महिला सुम्बुल से हुआ।